The Shreemad Bhagavatam, revered as a manifestation of Shree Krishna himself, is a cornerstone of Sanatan Dharma. Within this scripture, the Raas Panchadhyayi, encompassing Chapters 29 to 33 of Canto 10, is seen as the lifeblood, encapsulating the essence of divine love. This section culminates in the “Gopi Geet”, the 19 verses of Chapter 31. These verses, arising from the Gopis’ overwhelming separation from Krishna during the Raas Leela, are considered the crown jewel of the Raas Panchadhyayi. Written in the evocative Kanak Manjari Chand, the Gopi Geet expresses the Gopis’ love for Krishna as their soul’s beloved (Madhurya bhav). With its intoxicating effect on the listener, this love embodies the essence of the Bhagavatam’s title – the “Nectar of Devotion.”

Gopi Geet lyrics in Sanskrit with Hindi and English meaning

जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि ।
दयित दृश्यतां दिक्षु तावका- स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥ १॥
jayati te’dhikaṃ janmanā vrajaḥ śrayata indirā śaśvadatra hi ।
dayita dṛśyatāṃ dikṣu tāvakā- sxtvayi dhṛtāsavastvāṃ vicinvate ॥1॥

हे प्यारे ! तुम्हारे जन्म के कारण वैकुण्ठ आदि लोकों से भी व्रज की महिमा बढ गयी है। तभी तो सौन्दर्य और मृदुलता की देवी लक्ष्मीजी अपना निवास स्थान वैकुण्ठ छोड़कर यहाँ नित्य निरंतर निवास करने लगी है, इसकी सेवा करने लगी है। परन्तु हे प्रियतम ! देखो तुम्हारी गोपियाँ जिन्होंने तुम्हारे चरणों में ही अपने प्राण समर्पित कर रखे हैं, वन वन भटककर तुम्हें ढूंढ़ रही हैं।।

The gopis, their voices filled with adoration, spoke to Krishna- Beloved! Your birth has transformed Braja into a land of unmatched glory. Even the goddess of fortune, Indira herself, has chosen to reside here forever. It is only for You, our hearts overflowing with devotion, that we cling to life. We have searched every corner, yearning for Your presence. Please, Krishna, show Yourself to us and soothe the ache in our souls.

शरदुदाशये साधुजातस- त्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा ।
सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥२॥
śaradudāśaye sādhujātasa- txsarasijodarashrīmuṣā dṛśā ।
suratanātha te’śulkadāsikā varada nighnato neha kiṃ vadhaḥ ॥2॥

हे हमारे प्रेम पूर्ण ह्रदय के स्वामी ! हम तुम्हारी बिना मोल की दासी हैं। तुम शरदऋतु के सुन्दर जलाशय में से चाँदनी की छटा के सौन्दर्य को चुराने वाले नेत्रों से हमें घायल कर चुके हो । हे हमारे मनोरथ पूर्ण करने वाले प्राणेश्वर ! क्या नेत्रों से मारना वध नहीं है? अस्त्रों से ह्त्या करना ही वध है।

O master of our hearts, we are Your priceless servants. O beloved, fulfiller of all our desires, Is it not slaughter on Your part to strike us with the rays of Your divine eyes, which are more beautiful than the petals of an exquisite lotus in the clear autumn lake?

विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा- द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात् ।
वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया- दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥३॥
viṣajalāpyayādvyālarākṣasā- dvarṣamārutādvaidyutānalāt ।
vṛṣamayātmajādviśvatobhayā- dṛṣabha te vayaṃ rakṣitā muhuḥ ॥3॥

हे पुरुष शिरोमणि ! यमुनाजी के विषैले जल से होने वाली मृत्यु, अजगर के रूप में खाने वाली मृत्यु अघासुर, इन्द्र की वर्षा, आंधी, बिजली, दावानल, वृषभासुर और व्योमासुर आदि से एवम भिन्न भिन्न अवसरों पर सब प्रकार के भयों से तुमने बार- बार हम लोगों की रक्षा की है।

O exalted one among men! When the Yamuna ran black with venom’s touch (wrought by the vile Agha in serpent’s form), when storms raged, and lightning split the sky, when demons Vrishabh and Vyom threatened with monstrous might, it was Your hand that delivered us, time and again, from the clutches of fear.

न खलु गोपिकानन्दनो भवा- नखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् ।
विखनसार्थितो विश्वगुप्तये सख उदेयिवान्सात्वतां कुले ॥४॥
na khalu gopikānandanō bhavā- nakhaladēhināmantarātmadr̥k ।
vikhanasārthitō viśvaguptayē sakha udēyivānsātvatāṃ kulē ॥4॥

हे परम सखा ! तुम केवल यशोदा के ही पुत्र नहीं हो; समस्त शरीरधारियों के ह्रदय में रहने वाले उनके साक्षी हो,अन्तर्यामी हो । ! ब्रह्मा जी की प्रार्थना से विश्व की रक्षा करने के लिए तुम यदुवंश में अवतीर्ण हुए हो।

O dearest friend! You are not merely the son of Yashoda; You are the omnipresent observer residing in the hearts of all living beings, the all-knowing entity. Upon the summons of Brahmaji, You have descended in the Yadu dynasty to safeguard the world.

विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् ।
करसरोरुहं कान्त कामदं शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम् ॥५॥
viracitābhayaṃ vṛṣṇidhurya tē caraṇamīyuṣāṃ saṃsr̥tērbhayāt ।
karasaroruhāṃ kānta kāmadam̐ śirasi dhēhi naḥ śrīkaragraham॥5॥

हे यदुवंश शिरोमणि ! तुम अपने प्रेमियों की अभिलाषा पूर्ण करने वालों में सबसे आगे हो । जो लोग जन्म-मृत्यु रूप संसार के चक्कर से डरकर तुम्हारे चरणों की शरण ग्रहण करते हैं, उन्हें तुम्हारे कर कमल अपनी छत्र छाया में लेकर अभय कर देते हैं । हे हमारे प्रियतम ! सबकी लालसा-अभिलाषाओ को पूर्ण करने वाला वही करकमल, जिससे तुमने लक्ष्मीजी का हाथ पकड़ा है, हमारे सिर पर रख दो।

O crown jewel of the Yadu dynasty! You are foremost among those who fulfil the desires of Your devotees. Those who seek refuge at Your feet, fearing the cycle of birth and death, find shelter and fearlessness under Your divine hands. O beloved one, may Your hands, which once held the hand of Goddess Lakshmi, now bless us with the fulfilment of all our hopes and desires.

व्रजजनार्तिहन्वीर योषितां निजजनस्मयध्वंसनस्मित ।
भज सखे भवत्किंकरीः स्म नो जलरुहाननं चारु दर्शय ॥६॥
vrajajanārtihanvīra yoṣitāṃ nijajanasmayadhvaṃsanasmita ।
bhaja sakhe bhavatkīṃkarīḥ sma nō jalaruhānanaṃ cāru darśaya ॥6॥

हे वीर शिरोमणि श्यामसुंदर ! तुम सभी व्रजवासियों का दुःख दूर करने वाले हो । तुम्हारी मंद मंद मुस्कान की एक एक झलक ही तुम्हारे प्रेमी जनों के सारे मान-मद को चूर-चूर कर देने के लिए पर्याप्त हैं । हे हमारे प्यारे सखा ! हमसे रूठो मत, प्रेम करो । हम तो तुम्हारी दासी हैं, तुम्हारे चरणों पर न्योछावर हैं । हम अबलाओं को अपना वह परमसुन्दर सांवला मुखकमल दिखलाओ।

O valiant Shyamsundar! You are the one who alleviates all the sorrows of the Vrajvasis. Merely a single glimpse of Your gentle smile is enough to shatter all the pride and ego of Your devoted followers. O beloved friend! Please do not be displeased with us; instead, graciously shower upon us Your boundless love. As Your devoted servants, we are entirely dedicated to Your divine lotus feet. Please reveal to us Your humble maidens and Your supremely beautiful, dark-hued lotus face.

प्रणतदेहिनां पापकर्शनं तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् ।
फणिफणार्पितं ते पदांबुजं कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम् ॥७॥
praṇatadēhināṃ pāpakarśanaṃ tṛṇacarānugan śrīnikētanam ।
phaṇiphaṇārpitaṃ tē padāṃbujaṃ kṛṇu kucēṣu naḥ kr̥ndhi hṛcchayam ॥7॥

तुम्हारे चरणकमल शरणागत प्राणियों के सारे पापों को नष्ट कर देते हैं। वे समस्त सौन्दर्य, माधुर्यकी खान है और स्वयं लक्ष्मी जी उनकी सेवा करती रहती हैं । तुम उन्हीं चरणों से हमारे बछड़ों के पीछे-पीछे चलते हो और हमारे लिए उन्हें सांप के फणों तक पर रखने में भी तुमने संकोच नहीं किया । हमारा ह्रदय तुम्हारी विरह व्यथा की आग से जल रहा है तुम्हारी मिलन की आकांक्षा हमें सता रही है । तुम अपने वे ही चरण हमारे वक्ष स्थल पर रखकर हमारे ह्रदय की ज्वाला शांत कर दो।

Your lotus feet obliterate the sins of those who take refuge in You. They are the epitome of beauty and kindness, and even Goddess Lakshmi worships them. With those very feet, You walk behind our cows, and You didn’t hesitate to place them even on the hoods of serpents for our sake. Our hearts ache with the pain of being apart from You, and the yearning for union with You tortures us. We implore You to place those same feet upon our chests and quench the flames of our sorrow.

मधुरया गिरा वल्गुवाक्यया बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण ।
विधिकरीरिमा वीर मुह्यती- रधरसीधुनाऽऽप्याययस्व नः ॥८॥
madhurayā girā valguvākyayā budhamanojñayā puṣkarēkṣaṇa ।
vidhikarīrimā vīra muhyatī- radharasīdhunā’pyāyayasva naḥ ॥8॥

हे कमल नयन ! तुम्हारी वाणी कितनी मधुर है । तुम्हारा एक एक शब्द हमारे लिए अमृत से बढकर मधुर है । बड़े बड़े विद्वान उसमे रम जाते हैं । उसपर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं । तुम्हारी उसी वाणी का रसास्वादन करके तुम्हारी आज्ञाकारिणी दासी गोपियाँ मोहित हो रही हैं । हे दानवीर ! अब तुम अपना दिव्य अमृत से भी मधुर अधर-रस पिलाकर हमें जीवन-दान दो, छका दो।

O lotus-eyed one! How melodious and enchanting are Your words! Each syllable that escapes Your lips is more alluring than the sweetest nectar, captivating even the noblest of scholars who willingly offer up all they possess in adoration. The ambrosial essence of Your words spellbinds the obedient Gopis. O generous one! Bestow upon us the elixir of life, permit us to partake in the divine nectar that flows from Your lips, sweeter than the sweetest honey, and grant respite to our fervent desires.

तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहम् ।
श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः ॥९॥
tava kathāmṛtaṃ taptajīvanaṃ kavibhirīḍitaṃ kalmaṣāpaham ।
śravaṇamaṅgalaṃ śrīmadātataṃ bhūvi gṛṇanti tē bhūridā janāḥ ॥9॥

हे प्रभो ! तुम्हारी लीला कथा भी अमृत स्वरूप है । विरह से सताए हुये लोगों के लिए तो वह सर्वस्व जीवन ही है। बड़े बड़े ज्ञानी महात्माओं – भक्तकवियों ने उसका गान किया है, वह सारे पाप – ताप तो मिटाती ही है, साथ ही श्रवण मात्र से परम मंगल – परम कल्याण का दान भी करती है । वह परम सुन्दर, परम मधुर और बहुत विस्तृत भी है । जो तुम्हारी उस लीलाकथा का गान करते हैं, वास्तव में भू-लोक में वे ही सबसे बड़े दाता हैं।

O Lord! The stories of Your divine pastimes are like nectar. For those tormented by separation, they are life itself. Great sages and devout poets have sung of them, and they not only dispel all sins and sorrows but also bestow supreme auspiciousness and well-being merely by being heard. These stories are supremely beautiful, immensely sweet, and vast in scope. Those who sing of Your divine pastimes are truly the greatest benefactors in this world.

प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम् ।
रहसि संविदो या हृदिस्पृशः कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ॥१०॥
prahasiṭaṃ priya prēmavīkṣaṇaṃ viharaṇaṃ ca tē dhyānamaṅgalam ।
rahasi saṃvido yā hṛdispṛśaḥ kuhaka nō manaḥ kṣōbhayanti hi ॥10॥

हे प्यारे ! एक दिन वह था, जब तुम्हारे प्रेम भरी हंसी और चितवन तथा तुम्हारी तरह तरह की क्रीडाओं का ध्यान करके हम आनंद में मग्न हो जाया करती थी । उनका ध्यान भी परम मंगलदायक है, उसके बाद तुम मिले । तुमने एकांत में ह्रदय-स्पर्शी ठिठोलियाँ की, प्रेम की बातें कहीं । हे छलिया ! अब वे सब बातें याद आकर हमारे मन को क्षुब्ध कर देती हैं।

O beloved! Reminiscing about Your affectionate laughter, looks, and playful moments filled us with immense happiness. The very idea of them brought us great joy. When we met, You shared touching jokes and expressions of love with us in private. O deceiver! Now, recalling those times deeply troubles our hearts.

चलसि यद्व्रजाच्चारयन्पशून् नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम् ।
शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः कलिलतां मनः कान्त गच्छति ॥११॥
chalasi yadvrajāccārayanpaśūn nalinasundaraṃ nātha tē padam ।
śilatṛṇāṅkuraiḥ sīdatīti naḥ kalilatāṃ manaḥ kānta gacchati ॥11॥
हे हमारे प्यारे स्वामी ! हे प्रियतम ! तुम्हारे चरण, कमल से भी सुकोमल और सुन्दर हैं । जब तुम गौओं को चराने के लिये व्रज से निकलते हो तब यह सोचकर कि तुम्हारे वे युगल चरण कंकड़, तिनके, कुश एंव कांटे चुभ जाने से कष्ट पाते होंगे; हमारा मन बेचैन होजाता है । हमें बड़ा दुःख होता है।

O, our beloved master! O dearest one! Your feet are as tender and lovely as lotus petals. When You leave Braja to tend to the cows, we become troubled at the idea of Your gentle feet being pained by pebbles, twigs, grass, and thorns. The mere thought of You experiencing any discomfort causes us great sorrow.

दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै- र्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम् ।
घनरजस्वलं दर्शयन्मुहु- र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि ॥१२॥
dinaparikṣaye nīlakuntalai- rvanaruhānanaṃ bibhradāvṛtam ।
ghanarajasvalaṃ darśayanmuhu- rmanasi naḥ smaraṃ vīra yacchasi ॥12॥

हे हमारे वीर प्रियतम ! दिन ढलने पर जब तुम वन से घर लौटते हो तो हम देखतीं हैं की तुम्हारे मुख कमल पर नीली नीली अलकें लटक रही हैं और गौओं के खुर से उड़ उड़कर घनी धुल पड़ी हुई है । तुम अपना वह मनोहारी सौन्दर्य हमें दिखा दिखाकर हमारे ह्रदय में मिलन की आकांक्षा उत्पन्न करते हो।

O, our valiant beloved! As the day fades and You return home from the forest, we see the blue flowers of Your hair gently hanging over Your lotus-like face, and the dust from the cows’ hooves settles on You. By revealing that enchanting beauty to us, You kindle the longing for union in our hearts.

प्रणतकामदं पद्मजार्चितं धरणिमण्डनं ध्येयमापदि ।
चरणपङ्कजं शंतमं च ते रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन् ॥१३॥
praṇatakāmadaṃ padmajārcitaṃ dharanimanḍanaṃ dhyeyamāpadi ।
caraṇapaṅkajaṃ śaṃtamaṃ ca tē ramaṇa naḥ stanēṣvarpayādhihan ॥13॥

हे प्रियतम ! एकमात्र तुम्हीं हमारे सारे दुखों को मिटाने वाले हो । तुम्हारे चरण कमल शरणागत भक्तों की समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले है । स्वयं लक्ष्मी जी उनकी सेवा करती हैं । और पृथ्वी के तो वे भूषण ही हैं । आपत्ति के समय एकमात्र उन्हीं का चिंतन करना उचित है जिससे सारी आपत्तियां कट जाती हैं । हे कुंजबिहारी ! तुम अपने उन परम कल्याण स्वरूप चरण हमारे वक्षस्थल पर रखकर हमारे ह्रदय की व्यथा शांत कर दो।

O beloved! You alone are the one who can dispel all our sorrows. Your lotus feet fulfil all the desires of Your devotees who seek refuge in them. Goddess Lakshmi herself serves them, and they are the jewels of this universe. In times of difficulty, they are appropriate objects of meditation by which all suffering is vanquished. O wanderer of Kunj (groves)! Please place Your pious lotus feet on our chest (heart) to bless and give us peace to confer supreme beatitude and peace.

सुरतवर्धनं शोकनाशनं स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम् ।
इतररागविस्मारणं नृणां वितर वीर नस्तेऽधरामृतम् ॥१४॥
suratavardhanaṃ śokanāśanaṃ svaritavēṇunā suṣṭhu cumbitam ।
itararāgavismāraṇaṃ nṛṇāṃ vitaravīra nastē’dharāmr̥tam ॥14॥

हे वीर शिरोमणि ! तुम्हारा अधरामृत मिलन के सुख को को बढ़ाने वाला है । वह विरहजन्य समस्त शोक संताप को नष्ट कर देता है । यह गाने वाली बांसुरी भलीभांति उसे चूमती रहती है । जिन्होंने उसे एक बार पी लिया, उन लोगों को फिर अन्य सारी आसक्तियों का स्मरण भी नहीं होता । अपना वही अधरामृत हमें पिलाओ।

O crown jewel of all the brave ones! The sweet nectar of Your lips, a divine elixir, elevates the joy of togetherness and banishes the sorrows and trials of separation. The enchanting melody of Your flute, caressed by Your lips, cascades like ambrosia. Once tasted, all other yearnings and ties lose their allure. Bestow upon us that divine nectar from Your lips, enriching our existence.

अटति यद्भवानह्नि काननं त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यताम् ।
कुटिलकुन्तलं श्रीमुखं च ते जड उदीक्षतां पक्ष्मकृद्दृशाम् ॥१५॥
aṭati yadbhavānahni kānanaṃ truṭiryugāyate tvāmapaśyatām ।
kuṭilakuntalaṃ śrīmukhaṃ ca tē jaḍa udīkṣatāṃ pakṣmakṛddṛśām ॥15॥

हे प्यारे ! दिन के समय जब तुम वन में विहार करने के लिए चले जाते हो, तब तुम्हें देखे बिना हमारे लिए एक एक क्षण युग के समान हो जाता है और जब तुम संध्या के समय लौटते हो तथा घुंघराली अलकों से युक्त तुम्हारा परम सुन्दर मुखारविंद हम देखती हैं, उस समय पलकों का गिरना भी हमारे लिए अत्यंत कष्टकारी हो जाता है और ऐसा जान पड़ता है की इन पलकों को बनाने वाला विधाता मूर्ख है।

O beloved! During the sunlit hours, as You venture into the forest, each fleeting moment in Your absence weighs upon us like a Yuga (age). When You return at dusk, and we eagerly look upon Your most beautiful face framed with curly locks, our eyelids hinder our pleasure. At that moment, we feel that the creator of eyelids made them without any purpose.

पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवा- नतिविलङ्घ्य तेऽन्त्यच्युतागताः ।
गतिविदस्तवोद्गीतमोहिताः कितव योषितः कस्त्यजेन्निशि ॥१६॥
patisutānvayabhrātṛbāndhavā- nativilaṅghya tē’ntyacyutāgatāḥ ।
gatividastavōdgītamōhitāḥ kitava yōṣitaḥ kastyajenniśi ॥16॥

हे हमारे प्यारे श्याम सुन्दर ! हम अपने पति-पुत्र, भाई -बन्धु, और कुल परिवार का त्यागकर, उनकी इच्छा और आज्ञाओं का उल्लंघन करके तुम्हारे पास आयी हैं । हम तुम्हारी हर चाल को जानती हैं, हर संकेत समझती हैं और तुम्हारे मधुर गान से मोहित होकर यहाँ आयी हैं । हे कपटी ! इस प्रकार रात्रि के समय आयी हुई युवतियों को तुम्हारे सिवा और कौन छोड़ सकता है।

O, our beloved Shyamsundar! We have forsaken our husbands, sons, brothers, and entire family, defying their wishes and commands, to come to You. We know every gesture of Yours, understand every hint, and have come here captivated by Your sweet songs. O deceiver! Who, but a cheater like You, would abandon Young women like us, who come to see You in the middle of the night, captured by the melodious music of Your flute?

रहसि संविदं हृच्छयोदयं प्रहसिताननं प्रेमवीक्षणम् ।
बृहदुरः श्रियो वीक्ष्य धाम ते मुहुरतिस्पृहा मुह्यते मनः ॥१७॥
rahasi saṃvidaṃ hṛcchayōdayaṃ prahasiṭānanaṃ prēmavīkṣaṇam ।
bṛhaduraḥ śriyō vīkṣya dhāma tē muhuratispr̥hā muhyate manaḥ ॥17॥

हे प्यारे ! एकांत में तुम मिलन की इच्छा और प्रेम-भाव जगाने वाली बातें किया करते थे । ठिठोली करके हमें छेड़ते थे । तुम प्रेम भरी चितवन से हमारी ओर देखकर मुस्कुरा देते थे और हम तुम्हारा वह विशाल वक्ष:स्थल देखती थीं जिस पर लक्ष्मी जी नित्य निरंतर निवास करती हैं । हे प्रिये ! तबसे अब तक निरंतर हमारी लालसा बढ़ती ही जा रही है और हमारा मन तुम्हारे प्रति अत्यंत आसक्त होता जा रहा है।

O beloved! In solitude, You used to express words that ignited the yearning for unity and aroused feelings of affection. You would playfully tease us with witty remarks, gaze at us with an affectionate look, and smile. We would behold Your expansive chest, wherein Goddess Lakshmi perpetually resides. Beloved one! Since then, our yearning has only intensified, and our hearts have grown deeply connected to You.

व्रजवनौकसां व्यक्तिरङ्ग ते वृजिनहन्त्र्यलं विश्वमङ्गलम् ।
त्यज मनाक् च नस्त्वत्स्पृहात्मनां स्वजनहृद्रुजां यन्निषूदनम् ॥१८॥
vrajavanaukasāṃ vyaktiraṅga tē vṛjinahantryalaṃ viśvamaṅgalam ।
tyaja manāk ca nastvatspr̥hātmanāṃ svajanahr̥drujāṃ yanniṣūdanam ॥18॥

हे प्यारे ! तुम्हारी यह अभिव्यक्ति व्रज-वनवासियों के सम्पूर्ण दुःख ताप को नष्ट करने वाली और विश्व का पूर्ण मंगल करने के लिए है । हमारा ह्रदय तुम्हारे प्रति लालसा से भर रहा है । कुछ थोड़ी सी ऐसी औषधि प्रदान करो, जो तुम्हारे निज जनो के ह्रदय रोग को सर्वथा निर्मूल कर दे।

O beloved! Your all-auspicious manifestation is for the removal of the sorrows of residents of Braja and for the well-being of the entire universe. Our hearts and minds long for Your heavenly association. Please bless us with some remedy that will put an end to the pain in our hearts.

यत्ते सुजातचरणाम्बुरुहं स्तनेष भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु ।
तेनाटवीमटसि तद्व्यथते न किंस्वित् कूर्पादिभिर्भ्रमति धीर्भवदायुषां नः ॥१९॥
yattē sujātacaraṇāmburūhaṃ stanēṣa bhītāḥ śanaiḥ priya dadhīmahi karkaśēṣu ।
tēnāṭavīmaṭasi tadvyathatē na kiṃsvit kūrpādibhirbhramati dhīrbhavadāyuṣāṃ naḥ ॥19॥

हे श्रीकृष्ण ! तुम्हारे चरण, कमल से भी कोमल हैं । उन्हें हम अपने कठोर स्तनों पर भी डरते डरते रखती हैं कि कहीं उन्हें चोट न लग जाय । उन्हीं चरणों से तुम रात्रि के समय घोर जंगल में छिपे-छिपे भटक रहे हो । क्या कंकड़, पत्थर, काँटे आदि की चोट लगने से उनमे पीड़ा नहीं होती ? हमें तो इसकी कल्पना मात्र से ही चक्कर आ रहा है । हम अचेत होती जा रही हैं । हे प्यारे श्यामसुन्दर ! हे प्राणनाथ ! हमारा जीवन तुम्हारे लिए है, हम तुम्हारे लिए जी रही हैं, हम सिर्फ तुम्हारी हैं।

O Shree Krishna! As Your feet are more tender than a lotus, we use utmost caution while putting them on our chest(heart). With the same tender feet, You wander in the deep forest bare feet. The mere thought of You treading with those tender feet on the thorny, stony paths in the forest gives us pain, and we lose our wits. O Lord, our existence is only for You. We are only living for You. We are only Yours!

VIDEO

Damodarastakam Lyrics

Follow me on Blogarama

By Admin